पहचान मुझे मैं कौन हूँ - कविता - सुगन

सदियों से मैं मौन हूँ ,
पहचान मुझे मैं कौन हूँ ।
लक्ष्मी हूँ  पार्वती भी हूँ ,
अन्नपूर्णा भी तो मैं ही हूँ ।
शिव के अर्धांग में समायी ,
पहचान मुझे मैं कौन हूँ ।
बन श्यामा की राधा मैंने ,
प्रेम को पवित्र बनाया ।
बन मीरा दर -दर भटकी ,
अपमान भी मैंने पाया ।
कभी चंढ़ी कभी काली हूँ ,
मूंड माल खप्पर धारणि ।
मैं ही तो माता ब्राह्मणी ,
अर्थ मैं अनर्थ भी मैं हूँ ।
अब तो बता मैं कौन हूँ !!
कभी अजन्मी मारी गयी ,
कभी दूध में डूबायी गयी ।
न सुनी किसीने सिसकियाँ ,
जब तेजाब से जलाई गयी ।
न जाने सदियों से क्यूँ मौन हूँ ,
तू पहचान तो मुझे मैं कौन हूँ ।
जो इज्ज़त हूँ सिर का ताज हूँ ,
तो हैवानों का क्यूँ शिकार हुई ।
हर घर के किसी कौनो में ,
दुबक कर मैं रोती हूँ ।
शिकायत भी मैं कैसे करूँ ,
सदियों से तो मैं मौन हूँ ।
क्या है अस्तित्व मेरा ,
अब तो बता मैं कौन हूँ  ?

सुगन - जोधपुर (राजस्थान)

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