आज त्रस्त भयग्रस्त गुरु - दोहा छंद - डॉ. राम कुमार झा "निकुंज"

शिक्षक को चाकर समझ,अभिभावक व्यवहार।
फँसा   संपदा   मोह  में, शील  कर्म लाचार।।१।।

चाहत  उत्तम  अंक  की, बच्चों   से नित चाह । 
निरत  सदा  धन संचयी, बस   क्रोधी   गुमराह।।२।।

अल्पज्ञान मदाग्नि  जल, करते   गुरु   अपमान।
कर ज़लील इन्सानियत, क्षत -विक्षत   सम्मान।।३।।

ज्ञान प्राप्ति कैसे सुलभ, मान  बिना  गुरु लोक।
देख  पिता को पूत जब, कर ज़लील गुरु शोक।।४।।

निर्मल   मन   परहित सदा, नीतिपथी  आचार्य। 
तमसो  मा  ज्योतिर्गमन, लक्ष्य   गुरु   सत्कार्य।।५।।

बिन  श्रद्धा   विश्वास जग, विद्यागम     अरमान।
मातु    पिता   भाई  सखा, संगम  गुरु   वरदान।।६।।

भाग्य विधाता गुरुकृपा, तिमिर विरत  यश विश्व।
जीवन हो शाश्वत सफल, कुसुमित मनु व्यक्तित्व।।७।।

कर्जदार  चाकर  समझ, अभिभावक गुरु मान।
कलह  क्रोध अवमान नित, तज  मर्यादा  शान।।८।।

आज त्रस्त भयग्रस्त गुरु, हर पल शंकित ज़ान।
शासक अभिभावक दशन, अवसीदन अपमान।।९।।

पराधीन      उन्मुक्तता, कवलित    ज्ञानालोक ।
ग्रास दीन बलहीन  गुरु, दहशत  जीवन  शोक।।१०।।

गुरुता हो  कैसे  सफल,  हो  भविष्य   निर्माण।
कलि काल विकराल भय, कौन करे गुरु  त्राण।।११।।

कवि "निकुंज"आहत विकल, लखि शिक्षक अवसाद।
चलें   भीत  नित   नीति पथ, क्या  दें  ज्ञान   प्रसाद।।१२।। 

कार्यभार   सुरसा     समा, त्वरित   कार्य     निर्वाह।
निर्वाचन     सेन्सस   समा,  यायावर    हर      राह।।१३।।

हृदयघात  व्याधि   विविध, ग्रसित    गुरु  अवसान।
क्षणिक शोक    का वक्त भी, मिला  न  दे  सम्मान।।१४।। 

शतशः   हो    साफल्यता, वरन्   दण्ड     अपराध।
ऊर्वर   या  बंजर      धरा, हरित  फलित  निर्बाध।।१५।।

डॉ. राम कुमार झा "निकुंज" - नई दिल्ली

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