जाति - कविता - प्रीति बौद्ध

यह जो हमारी जाति है।
वह कभी न जाती है।।

इस जाति ने बहुत ही सताया है
ऊंचे पदों का अपमान कराया है
यह किसी ने षड्यंत्र रचाया है
कुदरत ने सबको मानव बनाया है
सूर्या हवा ना माने जाति-पाती है।
यह जो हमारी जाति है।
वह कभी ना जाती  है।।

नीर  न करता भेद कभी 
बर्तन में भरते इसे सभी 
कंठ सूखे  पी लो अभी 
मैं नहीं मानती, जाति है।
यह जो हमारी जाति है।
वह कभी ना जाती है।।

पवन सबको एक जैसा भाया
शशि चांदनी सबको देता आया
अवनी बिना भेद भार उठाया
नदियां, झरना, अंबर, अवनी
सबने माना मानव ही जाति है।
यह जो हमारी जाति है।
वह कभी न जाती है।।

प्रीति बौद्ध - फिरोजाबाद (उत्तर प्रदेश)

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