आदत तुम्हारी न बन जाये - कविता - रमेश चंद्र वाजपेयी

हर किसी को
चाहना और
उसें प्यार जताना
कही आदत
तुम्हारी
न बन जाये।
हमसें झूठ
बोलना और
किसी के वादे निभाना
डर हमको, तुम्हे कोई
बदनाम न
कर जाये।
हमें न 
चहो तो
कोई गम नही।
पर समझों
औरों की चाहत में
कोई दम नही।
वावुल का ख्याल
ला कर।
कुल की मान
जताकर।
पलको में आँसू
दिखाकर
और कोई
विवषता बताकर।
चाहो अगर
दामन हमसें
छुड़ाना
सच
बताना
नही तो हम
यूँ ही मुफ्त में
बदनाम हो जायें।
हर किसी को
चाहना और
उसे प्यार जताना
कही आदत ये
तुम्हारी न
बन जाये।
कह दो
जमाने से 
काम न
चलेगा
रिस्ते फरमाने से।
हम तो खास है
उनके 
जाने
पहचाने से
न काम चलेगा
कुछ बहाने से।
हर जवान 
चाहेगा
हर शक्श की
हो सपनों की रानी
धुमायोगी आप
नजर जिघर 
प्यार ही प्यार
पाओगी जानी।
समझना है तुमको
की कही कोई छुछा
प्यार का दर्पण दिखा,
कोई न
भरना जाये।
हर किसी को चाहना
और उसे प्यार जताना
कहीं आदत तुम्हारी 
न बन जायें।

रमेश चंद्र वाजपेयी - करैरा, शिवपुरी (मध्य प्रदेश)

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