भवसागर से पार हो, खिले भक्ति मकरन्द।।१।।
जय बोलो गोविन्द की, दामोदर अभिराम।
करो कृष्ण प्रातःस्मरण, गाओ राधे श्याम।।२।।
जगन्नाथ हरि हर पुरी, भज रे मन अविराम।
जो अनन्त जगदीश हैं, पाओ भज सुखधाम।।३।।
नित नूतन हो अरुणिमा, कर्मयोग हो धर्म।
भक्ति योग माधव मनसि, सुयश सुफल सत्कर्म।।४।।
मधु निकुंज सुरभित कुसुम, सुरभित मन मकरन्द।
केशव गिरिधर राधिका, रास हृदय आनन्द।।५।।
डॉ. राम कुमार झा "निकुंज" - नई दिल्ली