कोरोना काल - कविता - माधव झा


कोरोना के इस काल मे,
फसे हैं लोग जंजाल में,
बांध नाक घूमना हैं सबको,
उस जीवन के  चाल  में,

मिलना जुलना भी बंद है,
बड़े बुजुर्गों के साथ मे,
कितने सादी भी टुटे हैं,
इसी  के  चक्र - चाल में,

खेलना कूदना भी बन्द हैं,
दोस्तो  लोगो के साथ मे,
परम्परा  सब भी टूट रहा है,
इस बीमारी  के  नाम  से,

हाथ मिलाना पैरों को छूना,
अब  कहाँ वो बात  हैं,
नमस्ते करते ही चलना,
नई रूल की शुरुआत है,

सोते जागते एक ही बातों पे,
रखना सबको को ध्यान हैं,
कोरोना से बचना ही अब,
नई जिंदगी की आगाज हैं,

माधव झा

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