पहली रात - कविता - बजरंगी लाल यादव


मेंरे जीवन की वो जो प्रथम रात थी,
दर्द मीठा था पर इक हंसी रात थी|

        रात भर हम मनाते दिवाली रहे,
        एक-दूजे के बाहों के माली रहे|

डालकर अपनी बाहों की माला उसे,
उसकी मालाओं में हम उलझते रहे|

  भूलकर सारे सपनों को हम उस निशा,
       इक अलग ही दिशा में बहकते रहे|

मोम सा था बदन जो पिघलता रहा, 
हम उसे दीप सा जो जलाते रहे|

    जलना बुझना क्रियाएं हम करते हुए,
      इक नयी जिन्दगानी बसाते रहे||


बजरंगी लाल यादव
दीदारगंज आजमगढ़ (उ०प्र०)

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