मेंरे जीवन की वो जो प्रथम रात थी,
दर्द मीठा था पर इक हंसी रात थी|
रात भर हम मनाते दिवाली रहे,
एक-दूजे के बाहों के माली रहे|
डालकर अपनी बाहों की माला उसे,
उसकी मालाओं में हम उलझते रहे|
भूलकर सारे सपनों को हम उस निशा,
इक अलग ही दिशा में बहकते रहे|
मोम सा था बदन जो पिघलता रहा,
हम उसे दीप सा जो जलाते रहे|
जलना बुझना क्रियाएं हम करते हुए,
इक नयी जिन्दगानी बसाते रहे||
बजरंगी लाल यादवदीदारगंज आजमगढ़ (उ०प्र०)