संदेश
इमारतें - कविता - ऊर्मि शर्मा
शहर की ऊँची इमारतें ख़ून पसीना पिए खड़ी है इसी गाँव के ग़रीब मज़दूर का पल में घुड़क दिया फुटपाथ से उसे उखाड़ आशियाना चार-हाथ का उ…
ग़रीब आदमी हूँ - कविता - आशीष कुमार
ग़रीब आदमी हूँ, मयस्सर नहीं सूखी रोटी भी जो मिलता है हलक में डाल लेता हूँ। जी तोड़ मेहनत करता हूँ, पूरे परिवार का बोझ ढो लेता हूँ। अपनो…
ज़िंदगी को देखा - कविता - नृपेंद्र शर्मा "सागर"
आज एक ज़िंदगी को देखा सूखे पुल के पाइप में जीते हुए। आज अबोध बचपन को देखा चावल का पानी दूध की जगह पीते हुए। आज ग़रीबी को देखा दुश्वारियो…
मैं ग़रीब हूँ - कविता - राम प्रसाद आर्य "रमेश"
मैं ग़रीब हूँ, तब मैं आप सबके करीब हूँ। लोगों को गर्व है, अपनी अमीरी पर, पर मुझे गर्व है, तो बस अपनी ग़रीबी पर। आप सबसे अपनी करीबी पर।…
किरदार - कविता - पुनेश समदर्शी
असली किरदार को कोई जानता नहीं, नकली किरदार के चर्चे बड़े हैं। सच्चे ग़रीब की कोई मानता नहीं, झूठे अमीर के साथ खड़े हैं। नसीब नहीं दो रो…
मैं गरीब हूँ - कविता - दिलीप कुमार शॉ
मैं ग़रीबी में हूँ इसलिए समाज का नाक हूँ। मैं दुःख में हूँ इसलिए दर्दो को बाटता हूँ। मैं जागता हूँ तो दो जून की रोटी पाता हूँ मैं संघ…
मिटे भूख जब दीन का - दोहा छंद - डॉ. राम कुमार झा "निकुंज"
जीवन है फुटपाथ पर, यहाँ वहाँ तकदीर। भूख वसन में भटकता, नीर नैन तस्वीर।।१।। भूख मरोड़े पेट को, हाथ ख़ोजते काम। दाता के नारों तले, शुष्क…