मैं गरीब हूँ - कविता - दिलीप कुमार शॉ

मैं ग़रीबी में हूँ 
इसलिए समाज का नाक हूँ।

मैं दुःख में हूँ 
इसलिए दर्दो को बाटता हूँ।

मैं जागता हूँ
तो दो जून की रोटी पाता हूँ
मैं संघर्ष में हूँ 
इसलिए परिस्थितियों से लड़ता हूँ।

तमाम फैले हैं पूंजीपति जन
उड़ते रहते हैं आकाश में 
मैं ग़रीब हूँ
इसलिए तल में हूँ।

दिलीप कुमार शॉ - हावड़ा, कोलकात्ता (पश्चिम बंगाल)

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