मैं ग़रीब हूँ - कविता - राम प्रसाद आर्य "रमेश"

मैं ग़रीब हूँ, 
तब मैं आप सबके करीब हूँ।
लोगों को गर्व है, अपनी अमीरी पर, 
पर मुझे गर्व है, तो बस अपनी ग़रीबी पर।
आप सबसे अपनी करीबी पर।।

मैं ग़रीब हूँ,
सिर्फ़ धन का, न कि मन का। 
लोगों को गर्व है अपने धन पर, 
पर, मुझे गर्व है तो बस अपने मन पर।
आप सबसे अपने हेल-मेल, सम्मेलन पर।। 

मैं ग़रीब हूँ, 
सिर्फ़ बल का, न कि अकल का। 
लोगों को गर्व है अपने बल पर, 
पर मुझे गर्व है, तो बस, अपनी अकल पर। 
आप सबके संग बिताए हर अविस्मरणीय पल पर।। 

मैं ग़रीब हूँ, 
सिर्फ़ घर का, न कि मन के सबर का। 
लोगों को गर्व है, अपने घर पर,  
पर मुझे गर्व है तो बस अपने सबर पर।
आप सबसे, दर-दर पर मिलती कदर पर।। 

मैं ग़रीब हूँ, 
सिर्फ़ दिखावे और छल का, न कि असल का। 
लोगों को गर्व है, अपने दिखावे की शख़्सियत पर, 
पर, मुझे गर्व है तो बस अपनी असलियत पर। 
आप सबकी अपने प्रति सच्ची, संवेदनशील नियत पर।। 

मैं ग़रीब हूँ, 
सिर्फ़ हैसियत का, न कि हौंसले का। 
लोगों को गर्व है अपनी हैसियत पर, 
पर, मुझे गर्व है, तो बस अपने ईमान और हौसले पर।
आप सबका आना-जाना जो है मेरे सूक्ष्म घोंसले पर।। 

मैं ग़रीब हूँ, 
सिर्फ़ नाम का, न कि काम का। 
लोगों को गर्व है अपने नाम पर, 
पर मुझे गर्व है, तो सिर्फ़ अपने काम पर।
आप सबसे मिल कर किए हर काम, पाए आराम पर।।

मैं ग़रीब हूँ, 
सिर्फ़ क़लम का, न कि कलाम का। 
लोगों को गर्व है अपनी क़लम पर, 
पर, मुझे गर्व है तो सिर्फ़ अपने कलाम पर। 
आप सबसे से सुबह-शाम होती दुवा-सलाम पर।। 

मैं ग़रीब हूँ, 
सिर्फ़ ज्ञान का, न कि जानकारी का। 
लोगों को गर्व है अपने ज्ञान पर, 
पर मुझे गर्व है, तो सिर्फ़ अपनी जानकारी पर। 
आप सबसे मिल रहे शुद्ध शीतल ज्ञान-वारी पर।। 

मैं ग़रीब हूँ, 
सिर्फ वैमनस्य-व्यभिचार का, न कि प्यार, विचार का।
लोगों को गर्व है अपने वैमनष्य-व्यभिचार पर, 
पर, मुझे गर्व है तो सिर्फ़ अपने प्यार व विचार पर। 
आप सबसे क़दम दर कदम मिल रहे सत्कार, दुलार पर।। 

मैं ग़रीब हूँ, 
मलाल नहीं, मुझे।
मुझे गर्व है, कि आप सबके करीब हूँ। 
आप सबके बीच बढ, पल, फल रहा हूँ, 
मैं बड़ा खुशनसीब हूँ।।

राम प्रसाद आर्य "रमेश" - जनपद, चम्पावत (उत्तराखण्ड)

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