नृपेंद्र शर्मा "सागर" - मुरादाबाद (उत्तर प्रदेश)
ज़िंदगी को देखा - कविता - नृपेंद्र शर्मा "सागर"
शुक्रवार, मई 07, 2021
आज एक ज़िंदगी को देखा सूखे पुल के पाइप में जीते हुए।
आज अबोध बचपन को देखा चावल का पानी दूध की जगह पीते हुए।
आज ग़रीबी को देखा दुश्वारियों को ज़िंदगी बनाकर मुस्कुराकर जीते हुए।।
आज एक माँ को देखा अभावों में भी मुस्कुराते हुए अपने लाडले को टूटे खिलौने से बहलाते हुए।
आज मम्तत्व को देखा अपने फटे आँचल को अपने नौनिहाल की छाया बनाते हुए।
आते जाते राहगीरों की भूखी नज़रो को अपने जिस्म से मन ही मन हटाते हुए।।
आज एक मजबूर बाप को देखा अपना क्षुदा पीड़ित उदर सहलाते हुए।
कितने बेबस हैं कुछ लोग जो वास्तविक ग़रीब हैं आज कुछ बड़ों को देखा बच्चों को अपना हिस्सा खिलाते हुए।
आज कुछ अमीरों को देखा गरीबों के हिस्से का राशन ले जाते हुए।।
सरकार बनती हैं वादे होते हैं ग़रीबी हटाने की बस बातें होती हैं।
आज एक और परिवार को देखा अपनी पुरखों की झोंपड़ी छोड़ कर सूखे पुल के नीचे जाते हुए।
ज़मीन छिन जाने के बाद पुल के पाइप में आशियाना बनाते हुए।।
आज फिर कुछ बच्चों को देखा पचपन से पहले बड़े हो जाते हुए।
पेट की आग की ख़ातिर नंगे बदन बोरा उठा कूड़ा सहलाते हुए।।
आज एक बेटी को देखा आपने बचपन के बदन को बुढ़ापे की हवस भरी निगाहों से बचाते हुए।
आज एक माँ को देखा आपने बच्चों की बेबसी पर आँसू बहाते हुए।
आज एक परिवार को देखा सूखे पुल के पाइप में ज़िंदगी बिताते हुए।।
साहित्य रचना को YouTube पर Subscribe करें।
देखिए साहित्य से जुड़ी Videos
विशेष रचनाएँ
सुप्रसिद्ध कवियों की देशभक्ति कविताएँ
अटल बिहारी वाजपेयी की देशभक्ति कविताएँ
फ़िराक़ गोरखपुरी के 30 मशहूर शेर
दुष्यंत कुमार की 10 चुनिंदा ग़ज़लें
कैफ़ी आज़मी के 10 बेहतरीन शेर
कबीर दास के 15 लोकप्रिय दोहे
भारतवर्षोन्नति कैसे हो सकती है? - भारतेंदु हरिश्चंद्र
पंच परमेश्वर - कहानी - प्रेमचंद
मिर्ज़ा ग़ालिब के 30 मशहूर शेर