संदेश
बने न जीवन ज़हर - कविता - सूर्य मणि दूबे "सूर्य"
तुम भी फटेहाल और वो भी फटेहाल, तुम तन दिखाते रहे वो तन छिपाता रहा। ठंढ में ठिठुर कर वो जीता रहा, दाने दाने तरस कर वो मरता रहा। पसंद न …
दलित - कविता - संजय राजभर "समित"
मैं सदियों से भूखा हूँ, आओ जरा हमारी बस्ती में, झाँककर देखो गृहस्थी में। कचराई आँखें हैं, उम्मीदों को बाँधे हैं। पिचके गाल, तन कमज़ोर, …
किरदार - कविता - पुनेश समदर्शी
असली किरदार को कोई जानता नहीं, नकली किरदार के चर्चे बड़े हैं। सच्चे ग़रीब की कोई मानता नहीं, झूठे अमीर के साथ खड़े हैं। नसीब नहीं दो रो…
ऊँची हवेली - कविता - नीरज सिंह कर्दम
फटे हुए कपड़ों में पैरों में चोट लगी है ठंड से ठिठुरता हुआ आँखों में आँसू लिए भूख से आंते सिकोड़ता हुआ उस ऊँची हवेली को निहारता हुआ एक…
भैया मैं भी पढ़ना चाहता हूँ - कविता - दीपक परमार "कलाकार"
भैया मैं भी पढ़ना चाहता हूँ, देश तो आगे बढ गया मैं भी बढ़ना चाहता हूँ। हमारे घर वाले हमें सुबह ही घर से बाहर भेज देते हैं, कबाड़ उठाओ …
मैं गरीब हूँ - कविता - दिलीप कुमार शॉ
मैं ग़रीबी में हूँ इसलिए समाज का नाक हूँ। मैं दुःख में हूँ इसलिए दर्दो को बाटता हूँ। मैं जागता हूँ तो दो जून की रोटी पाता हूँ मैं संघ…
मिटे भूख जब दीन का - दोहा छंद - डॉ. राम कुमार झा "निकुंज"
जीवन है फुटपाथ पर, यहाँ वहाँ तकदीर। भूख वसन में भटकता, नीर नैन तस्वीर।।१।। भूख मरोड़े पेट को, हाथ ख़ोजते काम। दाता के नारों तले, शुष्क…