भैया मैं भी पढ़ना चाहता हूँ - कविता - दीपक परमार "कलाकार"

भैया मैं भी पढ़ना चाहता हूँ,
देश तो आगे बढ गया मैं भी बढ़ना चाहता हूँ।
हमारे घर वाले हमें सुबह ही घर से बाहर भेज देते हैं, 
कबाड़ उठाओ और मांग के लाओ यह सब कहते हैं।
भैया आप हमारे परिवार को समझाते क्यों नहीं,
वह घर के पास वाले स्कूल में हमारा दाखिला करवाते क्यों नहीं।
बहुत रहा हूँ इस गंदगी में, मुझे अब और नहीं सड़ना है, 
भैया मुझे भी पढ़ना है।
 
मुझे मेरी क़िस्मत मेरे हाथों से लिखनी है,
जाकर स्कूल में नई-नई बातें सीखनी है।
अब राजा का बेटा ही राजा नहीं बनेगा,
नौकरी वही कर पाएगा जो मेहनत करेगा।
कामयाबी की सीढ़ी पर अब मैं भी चढ़ना चाहता हूँ,
भैया मैं भी पढ़ना चाहता हूँ।

जो पढ़ लिख जाते हैं वह नौकरी पर जाते हैं,
और जो मेरी तरह अनपढ़ हैं यूँ ही धक्के खाते हैं।
ना ही मैं कोई नौकरी चाहता और ना ही मुझे पैसा कमाना है,
मुझे तो बस मेरे जैसों के मन में ज्ञान का दीप जलाना है।
इस परिस्थिति से मुझे आगे बढ़ना है,
भैया मुझे भी पढ़ना है।

पढ़ लिखकर बहुत अफ़सर बने और बहुत लोग बॉर्डर पर खड़े हैं,
और बहुत सारे अनपढ़ जो मेरी तरह अब भी भ्रम भूलेखे में पड़े हैं।
बाबा साहब ने शिक्षा का सबको अधिकार दिया है,
दीपक परमार ने मेरी मदद का प्रण लिया है।
समाज में फैली बुराइयों से लड़ना चाहता हूँ,
भैया मैं भी पढ़ना चाहता हूँ।
देश तो आगे बढ़ गया मैं भी बढ़ना चाहता हूँ,
भैया मैं भी पढ़ना चाहता हूँ।

दीपक परमार "कलाकार" - हिसार (हरियाणा)

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