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विधा/विषय "ग़रीबी"
रोटी, कपड़ा और मकान - कविता - रीमा सिन्हा
गुरुवार, जनवरी 14, 2021
मख़मली पर्दों के पीछे भी एक और जहान है, रो रहे हैं सब वहाँ, न रोटी कपड़ा और मकान है। रूधिर जिनके सूख गये, पीते हलाहल हर रोज़ हैं, शर क्या…
ग़रीबी और लाचारी - कविता - अन्जनी अग्रवाल "ओजस्वी"
गुरुवार, दिसंबर 17, 2020
हाय ये कैसी, ग़रीबी व लाचारी। बना रही उसके जीवन को दुधारी।। क्या अजब, होती है ये ग़रीबी। न बढ़ाता कोई रिश्ता क़रीबी।। ग़रीबी की नही कोई…
ग़रीबी - कविता - मधुस्मिता सेनापति
मंगलवार, दिसंबर 15, 2020
ग़रीबी में पैदा हुए, क्या ग़रीबी में ही मर मिटेंगे। कितने ख्वाब लेकर आए थे हम इस जहान में, क्या इस अधूरेपन में ही दम हम तोड़ेंगे...!! जह…