संदेश
उठे जब भी कलम - कविता - ओम प्रकाश श्रीवास्तव 'ओम'
उठे जब भी कलम कुछ ऐसा लिखे, प्रभाव जिसका इस समाज में दिखे। कलम वह हथियार है जो वार तेज़ करती है, किसी गोले किसी बारूद से नहीं डरती है, …
क़लम - कविता - वर्षा अग्रवाल
ऐ क़लम तुमसे प्यार बहुत है, कैसे कहु इक़रार बहुत है। जब होती हू संग तुम्हारे, सब कुछ भूल जाती हूँ, काम काज घर परिवार छोड़ तुम संग खो जात…
क़लम लिख तू - कविता - आलोकेश्वर चबडाल
सुन दावानल सी दिख तू, ना किसी भी मोल बिक तू, त्याग दे भय भीरुता सब, मौन ना रह क़लम लिख तू, मौन ना रह क़लम लिख तू। वेदना के वेद लिख री, श…
कलम चल पड़ती है मेरी - कविता - संदीप कुमार
बस कलम यूँ ही चल पड़ती है मेरी। राह में चलते कभी, किसी का दीदार कर। बेवफ़ाई में कभी, कभी किसी के प्यार पर। भीड़ में कभी, तो कभी रात की तन…
क़लमकार फिर भी लिखता है - कविता - विजय गोदारा गांधी
हर बाज़ार, रहे खाली हाथ, तब पता चला सच कब बिकता है। सो कोशिशें बेकार गई, नसीब से ज़्यादा किसे मिलता है। मेरी तस्वीर में सूरत उनकी, आईना …
कोरे काग़ज़ और क़लम - गीत - डॉ. राम कुमार झा "निकुंज"
मैं काग़ज़ के कोरे पन्नों पर, अविरत अन्तर्मन भाव लिखती हूँ, जन ज़ज़्बातों की मालाओं को, कोरे काग़ज़ पर रव गढ़ती हू…
तुम सुनो रुको और ठहरो - कविता - आर एस आघात
तुम सुनो रुको और ठहरो और गौर से सुनो मेरी एक बात जो मुझे तुमसे कहनी है। आपको आज मुझे सुनना तो पड़ेगा बहुत दिन हो गए मुझे तुम्हारी बात…