क़लम लिख तू - कविता - आलोकेश्वर चबडाल

सुन दावानल सी दिख तू,
ना किसी भी मोल बिक तू,
त्याग दे भय भीरुता सब,
मौन ना रह क़लम लिख तू,
मौन ना रह क़लम लिख तू।

वेदना के वेद लिख री,
श्रम लिख तू स्वेद लिख री, 
सुकर्म का आभार लिख तू, 
कुकर्मों का खेद लिख री।

साँगाओं सी री रण में, 
ज़ख़्म के भी संग टिक तू, 
मौन ना रह क़लम लिख तू।

लिख आँसू की तपन लिख, 
लिख आशा की गलन लिख, 
लिख सीने के बवंडर, 
लिख नैनों की जलन लिख।

डगमगाये ये धरा पर
किंतु किंचित भी न डिग तू,
मौन ना रह क़लम लिख तू।

ना एक ही तू पक्ष लिखना,
न विष भरा ही वक्ष लिखना,
सच सुमित्रा का भी लिखना, 
न कैकई बस कक्ष लिखना।

वनगमन के सिय राम सी
संयमित सुसज्जित दिख तू, 
मौन ना रह क़लम लिख तू।

समाधान के रास्ते लिख, 
मानवता के वास्ते लिख, 
लिख अंतिम श्वांस तक तू,
लड़खड़ाते काँपते लिख।

मोक्ष पाले लेखनी ओ,
कसमसाती कुटी लिख तू,
मौन ना रह क़लम लिख तू।

बदलावी नारे तू लिख,
सद्भावी धारे तू लिख,
लिख रहे सब रात काली,
सुभोर के तारे तू लिख,

कठिन पल में कपट छल में,
दीपशिखाओं सी दिख तू,
मौन ना रह क़लम लिख तू।

आलोकेश्वर चबडाल - दिबियापुर (उत्तर प्रदेश)

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