संदेश
बेचारे विप्र भंगड़ी लाल - हास्य संस्मरण - सुषमा दीक्षित शुक्ला
बात उन दिनों की है जब मैं अपने वकालत द्वितीय वर्ष की परीक्षा लखनऊ विश्वविद्यालय में समाप्त हो जाने पर अवकाश के समय होस्टल से अपने गाँव…
नेताजी का चुनावी घोषणा-पत्र - हास्य व्यंग्य लेख - श्याम "राज"
भाइयों और बहनों........ हमने तो वो समय भी देखा है जब आदमी अंधेरा होने के बाद अपने घर से बाहर नहीं निकलता था। भाई-भाई पर शक करता था और …
पटाखा और पाबंदी - हास्य व्यंग्य लेख - कवि कुमार प्रिंस रस्तोगी
पटाखों पर पाबंदी लगना गले की हड्डी वाली बात हो गई है, एक तरफ तो छूट वाला विज्ञापन माइण्डवा में सीकू के आवाज की भांति घूम रहा है। हम और…
विधवा पेंशन - हास्य कविता - सुधीर श्रीवास्तव
पति पत्नी में बड़ा प्यार था, मगर अचानक एक दिन पत्नी को जाने क्या सूझी पति से बोली तुम्हारे दिमाग तो है ही नहीं। पति चौंका आंय ऐसा भी है…
गुमशुदा आलू और प्याज - व्यंग्य कथा - कवि कुमार प्रिंस रस्तोगी
कहाँ हो आलू? यह सवाल अब चारों और जंगल में आग की भांति फैल रहा है। आलू की ऐसी ढूनईय्या मची है कि आलू ना हो कोई सोने का जेवर हो। भाई आलू…
बगावत के बादशाह - हास्य व्यंग्य लेख - कवि कुमार प्रिंस रस्तोगी
भई चुनावी बयार में तो अच्छे-अच्छे बहक जाते हैं हम तो पहले से ही बगावती बादशाह हैं शुभचिंतक तो जनता के ही है ना, कुर्सी तो एक बहाना है …
आज का दौर - कविता - सूर्य मणि दूबे "सूर्य"
आज के दौर की बातें कर लें जुबा कुछ कहती कुछ दिल नें छुपाई है किसी की टोपी किसी के सर, किसी और ने पहनाई है, किसी का प्यार, किसी की पसन…