विधवा पेंशन - हास्य कविता - सुधीर श्रीवास्तव

पति पत्नी में बड़ा प्यार था,
मगर अचानक एक दिन
पत्नी को जाने क्या सूझी
पति से बोली
तुम्हारे दिमाग तो है ही नहीं।
पति चौंका
आंय ऐसा भी है?
अच्छा! अब समझा
कि पचास साल तुम्हारे साथ कैसे कटे।
चलिए देवी आप ही 
मुझे दिमागदार बनाइये।
पत्नी ने कहा
आपको बस मरने का
नाटक भर करना है।
बाकी मैं कर लूँगी
विधवा बन के रह लूँगी।
पति बेचारा कुछ बोल पाता
इससे पहले पत्नी ने
अपने दिमाग का कमाल दिखाया
देखो जी तुम्हारे जीते जी
तो पा नहीं सकती,
और अब विधवा पेंशन के बिना
मैं रह नहीं सकती।
तुम परदेश चले जाओ
अपनी मौत की अफवाह फैलाओ,
मर भी वापस न आओ,
मैं कैसे भी रह लूँगी,
विधवा पेंशन से ही गुजारा कर लूँगी।

सुधीर श्रीवास्तव - बड़गाँव, गोण्डा (उत्तर प्रदेश)

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