पटाखा और पाबंदी - हास्य व्यंग्य लेख - कवि कुमार प्रिंस रस्तोगी

पटाखों पर पाबंदी लगना गले की हड्डी वाली बात हो गई है, एक तरफ तो छूट वाला विज्ञापन माइण्डवा में सीकू के आवाज की भांति घूम रहा है। हम और हमारे दोस्तों में कौन ज्यादा धूम धड़ाका करेगा? अभी कोरोना का कहर कम ही हुआ है, कि त्योहारी सेल सीजन प्रारंभ हो गया जिसमें त्योहारों की भरमार है, और वह भी छूट वाली खुशियाँ धूम-धड़ाके से आएगी परंतु हमारे पैरों की धूल ने ही खुशियों पर ग्रहण लगा दिया है धूल सर चढ़कर बोल रही है, ट्रैफिक की कारिये सेल सड़कों पर ऐसे बिछी है, मानो बिकने के लिए लिए ही आधे दामों पर बाजारों में यहां वहां खड़ी हैं, एक कार के अंदर से समझावन लाल प्रवचन परोस रहे थे, कि यह लोग कभी पैदल नहीं चल सकते हैं। ट्रेफिक देखकर बोल ही पड़े कि साँस लेना क्या पैर रखना भी मुश्किल है परंतु सीकू तो लेना ही होगा जिससे दिवाली में चार चाँद लगेंगे और छूरछुरिया भी लेना है। लगता है अब ऑक्सीजन सिलेंडर लेकर ही दिवाली मनानी पड़ेगी परंतु सीकू के बगैर मजा कहां! प्रदूषण का बोलबाला इतना है कि जुबान निकालो तो एक्यूआई का पता चल जाता है, कि हवा में वायु गुणवत्ता कितनी है? अब स्वच्छ हवा के लिए पाबंद आदेश निर्माण, ट्रैफिक और उद्योगों की तो वाट लगा दी है। इस वायु प्रदूषण मे तो दो किलोमीटर दौड़ने वालों को दादी और नानी भी याद दिला दी है, अब एक किलोमीटर मे ही हांफ हांफ कर आधे हो गए हैं। नगरिया में प्रदूषण का बोलबाला है इसके लिए हॉटस्पॉट भी घोषित किए गए हैं लोग साफ हवा में साँस ले सकें, इसके लिए एनजीटी का झंडा और डंडा दोनों ही पूर्ण रूप में खुशियां देने के लिए गले की हड्डी बने हुए हैं, जिसके अंतर्गत वायु गुणवत्ता सूचकांक का मीटर जाग उठा है देर से ही सही पर "स्वास्थ्य जीवन और मस्त जीवन" की चिंता तो है। पाबंदी सीकू पर हैं और छुरछुरियों पर भी न की खुशियों के तेल भरे दीपक में जो उम्मीद लिए हमेशा ही खुशियों में चार चाँद लगाते हैं, रोशनी का स्वच्छता का प्रकाश फैलाते है एक दिवाली रौशनी वाली पर्यावण स्वच्छता वाली।

कवि कुमार प्रिंस रस्तोगी - सहआदतगंज, लखनऊ (उत्तर प्रदेश)

Instagram पर जुड़ें



साहित्य रचना को YouTube पर Subscribe करें।
देखिए साहित्य से जुड़ी Videos