संदेश
रविवार - कविता - राजेश 'राज'
सुन! कल रविवार है, बेफ़िक्री से खेलेंगे समय की बंदिशें दूर रख देंगे सुबह जल्दी आना। एक छोटी लेकिन महत्वपूर्ण योजना बनाते थे हम, मनपसंद …
माँ की याद - कविता - मेहा अनमोल दुबे
नियम, जपतप में लगे हुए, दिव्य शांत स्वरूपा, मेहा बन फुलों पर सो गई या मौन में सदा के लिए तल्लीन हो गई, दृष्टिकोण में तो सब जगह हो गई…
रोते दोनों सारी रात - कविता - राहुल भारद्वाज
कैसे भूल सकूँगा मैं, वह काली-काली अंधियारी रात। बहा ले गई जो मेरा गुलशन, कैसी थी वो काली रात॥ माँ का सर पर आँचल था, महका करता आँचल था।…
यादों के अवशेष - कविता - नीतू कोटनाला
सभ्यताओं का चेहरा तुम्हारे जैसा होता है जिसमें होते हैं मेहनत के अवशेष होती है वो गूढ़ भाषा जिसे समझा जाना मुश्किल है होते हैं वो दुख…
प्यारी माँ - कविता - मेहा अनमोल दुबे
प्यारी माँ! तुम बहुत याद आती हो, जब दिन ढलता है, जब नवरात्र का दिपक जलता है, जब साबुदाने खिचड़ी कि ख़ुशबू उडती है, जब हृदय मे पीड़ा होती …
लता मंगेशकर - लेख - सुनीता भट्ट पैन्यूली
जब कभी मुझे जीवन की अद्भुत और अलहदा अनूभूति ने भाव-विभोर किया मुझे उस आवाज़ का आलिंगन महसूस हुआ। जब कभी दुख की काहिली सी परछाई ने मेरे…
बहुत दिनों के बाद - कविता - प्रवीन 'पथिक'
बहुत दिनों के बाद, लगता है ऐसे; जैसे ज़िंदगी का दायरा सिमट गया हो एक छोटी बूॅंद में। मेघों की भीषण गर्जना, सिसकियों तक; हो गई हो सीमित।…