मेरे देश का मजदूर - कविता - हरिराम मीणा

मजदूरों की ताकत जानो, उनकी शक्ति को पहचानो।
तुम खाते हो बिरयानी, वह क्या जाने पकवान को।।
मत भूलो उनके वादे, वह होते हैं सीधे-साधे।
खुदगर्जी मजदूर बनाती  इंसान को।।

वह छोड़ आते अपने गाँव, वह न देखें धूप छाँव।
सबके महल बनाते वह न जाने कभी हार को।।
रूखी सूखी सुबह-शाम, दिनभर करता काम धाम।
भूल न जाना इस दुनिया के काश्तकार को।।

कंधो पर ढोता है  बोझ, काम कि वह करता खोज।
चंद पैसों की मजदूरी में वह करता कारोबार है।।
करते उस पर अत्याचार, उसके  सुने घरबार।
फिर भी कोई न जाने उसका भूखा परिवार हैं।।

बगिया और बगीचों में, चरखो और गलियों में।
मजदूरों की मेहनत से सब स्वर्ण दिखाई देता है।।
पर्वत और मैदानों में, खेतों और खलियान मे।
रक्त से सींचा है उसने, यहां स्वर्ग दिखाई देता है।।

उसने सब का पेट भरा है, कभी मौत से ना डरा है।
सुन लो मालिक उसकी, दरकार उसका जीणा है।
उनके है रोटी के लाले, उनके पांवो में है छाले।
मजदूरों का दुख जो लिखाता हरिराम मीणा हैंll

हरिराम मीणा - उगेन, बून्दी (राजस्थान)

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