संदेश
इमारतें - कविता - ऊर्मि शर्मा
शहर की ऊँची इमारतें ख़ून पसीना पिए खड़ी है इसी गाँव के ग़रीब मज़दूर का पल में घुड़क दिया फुटपाथ से उसे उखाड़ आशियाना चार-हाथ का उ…
मेरा दुःख मेरा दीपक है - कविता - गोलेन्द्र पटेल
जब मैं अपने माँ के गर्भ में था वह ढोती रही ईंट जब मेरा जन्म हुआ वह ढोती रही ईंट जब मैं दुधमुँहा शिशु था वह अपनी पीठ पर मुझे और सर पर …
मैं बुनकर मज़दूर - कविता - डॉ॰ अबू होरैरा
मैं बुनकर मज़दूर हुनर मेरा लूम चलाना। मेरी कोई उम्र नहीं है... मैं एक नन्हा बच्चा भी हो सकता हूँ जहाँ मेरे नन्हे हाथों में किताब होनी च…
मज़दूर की दशा - कविता - रूशदा नाज़
एक पहर, गर्मियों के दिन तमतमाते धूप में दूर एक मज़दूर को भवन बनाते देखा, झूलसती लू में न कोई छाया रंग-बिरंगी पगड़ी को देखा, ढुलकते सीकर…
मैं मज़दूर - कविता - प्रमोद कुमार
बीती रात हुई सुबह की बेला, जीने का फिर वही झमेला, निकल पड़ा सिर बाँध अँगोछी, कमाने घर-परिवार से दूर। मैं मज़दूर, बेबस मजबूर! हिम्मत के …
मैं महत्त्वपूर्ण हूँ - कविता - डॉ॰ रेखा मंडलोई 'गंगा' | मज़दूरों पर कविता
मज़दूर दिवस पर मज़दूर वर्ग भी समाज में महत्वपूर्ण हैं इस सम्मान की भावना के साथ उनके महत्व को दर्शाती कविता। कहने को मैं मज़दूर दीन हीन स…
मज़दूर - कविता - सुनील कुमार महला
मज़दूर पर कविता लिखना टेढ़ी खीर है कवि मज़दूर जितनी मेहनत नहीं करता लेकिन यह कटु सत्य है सच्चा मज़दूर मेहनत करता है मेहनत, ईमानदारी की खा…