संदेश
काठ का कलेजा - कविता - संजय राजभर 'समित'
एकदम सून्न सी लाचार बदनसीब एक माँ अपने तेरह साल के बच्चे को परदेश जाते हुए देख रही थी सरपट दौड़ती गाड़ी ओझल हो गई फिर भी ताक रही थी सो…
लौट आओ माँ - कविता - राजेश 'राज'
शून्य में टिक गईं सजल उदास आँखें, दिल में उठी एक वेदनापूर्ण टीस, घर जाने की उत्सुकता भी थक सी गई है, क्योंकि– जिन्हें था हर पल बेटे का…
अब तो आराम करो माँ - कविता - रविंद्र दुबे 'बाबु'
गीत गाती लोरी सुनाती, साहित्यिक थाप से मुझे सुलाती, अवधी, गोंड, गाँव-डगर, खान-पान व्रत उपवास सिखाती, खेतों पर अन्न का दाना लाने, बैल…
माँ - कविता - रमेश चन्द्र यादव
घर पर शादी की तैयारी, सर पर आया कारज भारी। नेक सलाह हर पल दे मुझको, माँ दे दो कोई आज उधारी॥ पकड़ उँगली जिसकी मैंने, पग घरती पर रखना सीख…
माँ देवकी की वेदना - कविता - शालिनी तिवारी
देवकी के सुन नैनों में फिर उठी, हुक कान्हा के दरस की, एक बार दिखला दे कोई झलक, एक हर बीते बरस की। पहले उसकी मुस्कान थी कैसी, कैसे आँखो…
माँ - दोहा छंद - शिव शरण सिंह चौहान 'अंशुमाली'
माँ को पूजिय रे मना धरि चरनन में शीश। सफल होय जीवन मनुज देहिं ईश आसीस॥ माता की रज माथ धरि बड़े बनत हैं लोग। आशिष ऐसो कवच है भागैं दुःख…
माँ जैसा कोई नहीं - कविता - प्रिती दूबे
तुम सब कुछ कैसे जान लेती हो माँ? बच्चो के दुःख को कैसे पहचान लेती हो माँ? माँ बच्चो को सुलाकर ख़ुद नहीं सोती है, अपने हर शब्दो में दुआ…