काठ का कलेजा - कविता - संजय राजभर 'समित'

काठ का कलेजा - कविता - संजय राजभर 'समित' | Hindi Kavita - Kaath Ka Kaleja - Sanjay Rajbhar Samit | Hindi Poem On Mother. माँ पर कविता
एकदम सून्न सी
लाचार बदनसीब एक माँ
अपने तेरह साल के बच्चे को
परदेश जाते हुए देख रही थी
सरपट दौड़ती गाड़ी
ओझल हो गई
फिर भी ताक रही थी
सोच रही थी
एक नन्हा सा बच्चा
कैसे बिन माँ रहेगा
कैसे जी तोड़ मेहनत करेगा
वह काठ सी हो गई
कलेजा थामें
घंटों उधेड़बुन में खड़ी रही
संसार में लड़ाई
ख़ुद लड़नी पड़ती है। 


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