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विधा/विषय "पुरूष"
पुरुष की कल्पनाएँ - कविता - आयुष सोनी
गुरुवार, दिसंबर 15, 2022
दफ़्तर से लौटकर थका हुआ पलँग पर बेहोश सा लेटा हुआ एक पुरुष अपने मन में कैसी कल्पना करता है? वह कल्पना करता है उस दिन की जब वह सभी सा…
स्त्री-पुरुष दोनों की भूमिका अलग - कविता - नौशीन परवीन
शनिवार, सितंबर 24, 2022
बहुत सी लेखिकाएँ स्त्रियों की जीवन गाथा लिख रही है हर स्त्रियों की अपनी कहानी होती है। मध्यम वर्ग की स्त्री पुरुषों की पकड़ से स्व…
पुरुष होना कहाँ आसान है - कविता - चीनू गिरि
शनिवार, फ़रवरी 06, 2021
कहना जितना आसान तुम पुरुष हो, मगर पुरुष होना कहाँ आसान है! पुरुष के सिर पर है ज़िम्मेदारी सारी, पत्नी मेरा हक़ है तुम पर, माँ कहती मेरे …
कब तक सुधर पाओगे - कविता - डॉ. राजकुमारी
शनिवार, नवंबर 21, 2020
हे पुरुष, दंभ को कब तक रिश्तों के आड़े लाओगे ओह! यूं तो तुम एक दिन पत्थर दिल हो जाओगे पुरुष तुम सुधर पाओगे? हे पुरुष, स्त्री के वजूद क…