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छवि (भाग ८) - कविता - डॉ. ममता बनर्जी "मंजरी"
(८) छवि है अनुपम कर्मभूमि की, अवलोकन कर लो ज़रा। कर्मयोगियों से जगमग है, मनमोहिनी वसुंधरा।। योगी रत हैं योग-ध्यान में, भोगी रत आसक्ति म…
छवि (भाग ७) - कविता - डॉ. ममता बनर्जी "मंजरी"
(७) मानव योगी, मानव भोगी, मानव ईश समान हैं। मानव सज्जन-दुर्जन, हिंसक, मूरख अरु विद्वान हैं।। सामाजिक प्राणी है मानव, धार्मिक निष्ठावान…
छवि (भाग ६) - कविता - डॉ. ममता बनर्जी "मंजरी"
(६) मानव काया मोक्ष-द्वार है, परम साधनागार भी। जीवन दुखमय यही बनाए, करे यही उद्धार भी।। जीवन सुख-दुख का सम्मिश्रण, धूप-छाँव का खेल है।…
छवि (भाग ५) - कविता - डॉ. ममता बनर्जी "मंजरी"
(५) उगते-डूबते हुए सूरज, सतरंगी किरणें लिए। अंबर पे मुस्काता चंदा, मनमोहक सूरत लिए।। शीश उठाए पर्वत नाना, शीतल वायु मनोहरा। सुरभित पुष…
छवि (भाग ४) - कविता - डॉ. ममता बनर्जी "मंजरी"
(४) मनु-श्रद्धा महामिलन गाथा, शुचि कल्पना 'प्रसाद' की। प्रश्न भिन्न हैं प्रथम-पुरुष पर, किसने भू आबाद की? विविध धर्मग्रंथों का…
छवि (भाग ३) - कविता - डॉ. ममता बनर्जी "मंजरी"
(३) जब देवसृष्टि का नाश हुआ, जल प्रलय प्रबलतम मचा। जल मग्न धरा जन शून्य पड़ी, जीवित केवल मनु बचा। बनी संगिनी चिंता उसकी, उहापोह की थी घ…
छवि (भाग २) - कविता - डॉ. ममता बनर्जी "मंजरी"
(२) प्रलय क्षीर सागर में मचता, शयन करे गोविंद ज्यों। सृष्टि-सृजन करते हैं ब्रह्मा, बैठ-क्रोड़ अरविंद ज्यों।। जड़-चेतन का यही समन्वय, सृष…