छवि (भाग ४) - कविता - डॉ. ममता बनर्जी "मंजरी"

(४)
मनु-श्रद्धा महामिलन गाथा, शुचि कल्पना 'प्रसाद' की।
प्रश्न भिन्न हैं प्रथम-पुरुष पर, किसने भू आबाद की?
विविध धर्मग्रंथों का वंदन, अभिनंदन विज्ञान का।
प्रथम-पुरुष को नमन हमारा, स्वागत मनुज महान का।।

चरण-कमल वंदन उस माँ की, जन्म हमें जिसने दिया।
नमन निवेदन परम पिता को, देखभाल जिसने किया।।
कोटिशः नमन उस चेतन को, जो अव्यक्त अशेष हैं।
सत्यं शिवम सुंदरम जो, अविनाशी सर्वेश है।।

नमन करूँ उनको जो कहते, सृष्टिचक्र गतिमान है।
नमन उन्हें जो कहे सृष्टि को, सीधी रेख समान है।।
आदि और है अंत सृष्टि का, इक निश्चित अनुमान है।
बिग-बैंग इसे ही कहकर, आशान्वित विज्ञान हैं।।

महा सृष्टि के विस्तारक गण, चौदह मनु शत-शत नमो।
सप्तर्षि चार सनकादि महा, सबको बार-बार नमो।।
निवृति-प्रवृति मार्ग चले जो, बिन्दुज नादज को नमो।
ब्रह्मा विष्णु और महेश को, करूँ भक्ति पूर्वक नमो।।

सकल चराचर जीव-जगत को, नमन निवेदन मैं करूँ।
विद्यादात्री सरस्वती का, ध्यान हृदय तल में धरूँ।।
नमन करूँ उस परमेश्वर को, नश्वर तन जिसने दिया।
छवि अनुपम अखिल विश्व की, चित्रित जिसने है किया।।

डॉ. ममता बनर्जी "मंजरी" - गिरिडीह (झारखण्ड)

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