संदेश
विधा/विषय "धर्म"
प्रेम और जाति-धर्म - कविता - नीरज सिंह कर्दम
शुक्रवार, फ़रवरी 05, 2021
मैं आ जाती तुम्हारे साथ क़दम से क़दम मिलाकर चलने को, पर मेरे पैरों को जकड़ लिया जाति-धर्म की बेड़ियों ने। हम मिलते थे हर रोज़ उस स्कूल के…
धर्म और संस्कृति - कविता - बोधिसत्व कस्तूरिया
शनिवार, जनवरी 30, 2021
आज धर्म धरा से छूट गया! संस्कृति का दामन छूट गया!! नारी अबला से सबला बनी! अन्नपूर्णा का भ्रम टूट गया!! रोटी-बेलन छोड ब्रैड-बटर पिज्जा-…
परहित परम धर्म है बंधु - कविता - सूर्य मणि दूबे "सूर्य"
शुक्रवार, अक्तूबर 09, 2020
फेंक दिया बेकार समझ एक टुकड़ा वो रोटी का कोई तरसता है उसको कूड़े से उठा कर खाने को, माना की अमीरी का आलम सर पर चढ़ कर है खेल रहा जरा …