संदेश
कैसे समझते हैं खुद को पुरुष - कविता - उमाशंकर राव "उरेंदु"
खेत में काम करती हुई अकेली लड़की एकांत में पड़ी लड़की हो या शौच को निकली लड़की,या फिर बाग बगीचे में दिखनेवाली लड़की को देखकर कैसे क…
बलात्कारियों पर अंकुश - लेख - चन्द्र प्रकाश गौतम
बदलते सामाजिक परिवेश में हमें अपने सोच को बदलने की जरूरत है। साथ ही हम सभी पुरुष वर्ग को अपनी पुरुषवादी मानसिकता को भी बदलने की जरूरत …
नकली सुबह - कविता - कर्मवीर सिरोवा
सुबह हुई हैं क्या ये सच हैं या फिर ये भी कोई धोखा है आँखों का। अंधेरा भी कहाँ मरता हैं, हाँ, नकली उजाला फैला है। फ़क़त स्याह रात ढ़कने एक…
शोकाकूल स्तब्ध हूँ - कविता - डॉ. राम कुमार झा "निकुंज"
निःशब्द मौन शोकाकूल स्तब्ध हूँ, क्रन्दित मन शर्मसार प्रश्नचिह्न हू्ँ। खो मनुजता कुकर्मी बस दंश बन, क्या कहूँ, क…
मौत के हकदार - गीत - समुन्द्र सिंह पंवार
जो करते बच्चियों से बलात्कार। वे हैं मौत के हकदार।। उनसे कैसी हमदर्दी, जो हैं बेगैरत बेदर्दी, जो करते इज्जत तार - तार। …
नारी की दुर्दशा - कविता - आशाराम मीणा
मानवता मर चुकी हैं, इन कलयुगी सरकारों में। हाथरस की गैंगरेप की, ना खबर हैं अखबारों में।। दलित की बेटी को क्या हक है मानवाधिकारों में।…
मन वेदना - दोहा - डॉ. राम कुमार झा "निकुंज"
अहंकार निज बुद्धि का, तिरष्कार नित अन्य। दावानल अज्ञानता, करते कृत्य जघन्य।।१।। श्रवणशक्ति की नित कमी, कोपानल नित दग्ध। तर्क…