संदेश
विधा/विषय "दीवार"
गिरती दीवारें - कविता - कार्तिकेय शुक्ल
शनिवार, सितंबर 18, 2021
गिरती दीवारें और भी बहुत कुछ गिरा लाती हैं अपने साथ, सिर्फ़ मिट्टी और रेत के कण नहीं, जल के बूँद और लोहा भी नहीं, बल्कि उन मज़दूरों का …
आज दीवारें खड़ी हैं - ग़ज़ल - श्रवण निर्वाण
शनिवार, अप्रैल 10, 2021
आज दीवारें खड़ी हैं, मज़हबी ईंटें जड़ी हैं। वे कहाँ ये समझ पाए, कौन सी बातें बड़ी हैं। चाहते हैं गिर न जाए, रोज़ तो जंगें लड़ी हैं। लोग चाँद…
बोलती दीवार - कविता - डॉ. ममता बनर्जी "मंजरी"
मंगलवार, फ़रवरी 23, 2021
यह रहा मेरा १० बाई १० का कमरा। कमरे के सीलन भरी दीवारों पर उभरी है छोटी-छोटी आकृतियाँ, मैं नित देखती हूँ आकृतियों को, आज भी देख रही हू…