संदेश
बुद्ध बनने की इच्छा - कविता - प्रशान्त 'अरहत'
सिद्धार्थ के पिता की तरह; मेरे पिता के पास कोई राजपाट नहीं था, न मुझमें बुद्ध बनने की कोई इच्छा। मैंने सिर्फ़ एक घर छोड़ा था घर में माता…
आकांक्षा - कविता - डॉ॰ रोहित श्रीवास्तव 'सृजन'
नीव की ईट एक तरफ़ा प्रेमी की प्रीत दबा ही दी जाती है एक उठाता लंबी इमारत का बोझ दूजा उठता कुछ न कह पाने की सोच दोनों इतना दब जाते हैं श…
हज़ारों ख़्वाहिशें - कविता - राकेश कुशवाहा राही
तेरा मेरी ओर देखना परेशान करता है मुझे, तब जन्म लेती है हज़ारों ख़्वाहिशें जो सोचने को विवश करती है मुझे। आँखों से बहुत कहना निःशब्द …
तो कितना अच्छा होता - कविता - प्रवीन 'पथिक'
चाय के साथ बिस्कुट बोरते हुए, सोचा कि; कोई एक दूसरे से लग इतना मुलायम हो जाता; और चू जाता चाय की प्याली में; खो कर अपना ग़ुरूर, तो कितन…
चाह - कविता - तेज देवांगन
हम जीत की चाह लिए, गिरते, उठते पनाह लिए, निकल पड़े है, जीत की राह में, चाहे कंटक, सूल, ख़ार हो, आए संकट विकार हो, निकल पड़े हम जीत की र…
ख़्वाहिशें - कविता - अर्चना कोहली
उच्छल जलधि तरंग सी ख़्वाहिशें, नहीं है इस पर कोई भी बंदिशें। जीवन-रंगमंच पर फैले इसके पंख, अधूरी होने पर न करें कोई रंजिशें।। अंतर्मन म…
मैं चाहता हूँ - कविता - विपिन कुमार 'भारतीय'
मैं उड़ना चाहता हूँ खुले आसमान में आज़ाद पंछी की तरह। स्वछंद, निर्बाद, निर्विरोध। ऐसे ही जैसे पंछी उड़ता है। ना कहीं सीमाएँ ना रूकावटे…