तेरा मेरी ओर देखना
परेशान करता है मुझे,
तब जन्म लेती है हज़ारों ख़्वाहिशें
जो सोचने को विवश करती है मुझे।
आँखों से बहुत कहना
निःशब्द हो मुस्कुराना,
जो भरती है मन में हज़ारों भावनाएँ
बेचैन करती है कुछ कहने को मुझे।
प्रेम का निःशब्द होना
पवित्रता का संकेत है,
जिससे सह लेता मन दारुण यातनाएँ
सर्वस्व समर्पण का उत्साह देती है मुझे।
अँधेरे से ख़ुश होकर जब
जलता दीप हो जाते तुम,
तब भाती निज जीवन की आकाक्षाएँ
सूरज की चमक फ़ना कर देती है मुझे।
एक उम्र के पड़ाव पर
जब संग तुम नहीं होगी,
हृदय को झकझोर देती है ये आशंकाएँ
जीवन का स्वरूप डरा सा देता है मुझे।
राकेश कुशवाहा राही - ग़ाज़ीपुर (उत्तर प्रदेश)