संदेश
कृषक - कविता - डॉ॰ रोहित श्रीवास्तव 'सृजन'
कृषक का जीवन काँटों से भरा है, शीत ग्रीष्म बरखा से कब वे डरा है। विपत्तियों के पहाड़ सर पे उठाएँ, वह हँसता चेहरा खेतों में खड़ा है। सा…
अन्नदाता - कविता - समय सिंह जौल
चिड़ियों की चहचहाहट सुनकर भोर हुए जग जाता है, लिए कुदाली कंधे पर अपने खेत पहुँच जब जाता है। धरा का चीर कर सीना नए अंकुर उगाता है, मेरे…
किसान - कविता - काजल चौधरी
कृषि प्रधान देश हमारा, हमको जान से प्यारा है। देश की शान, देश का मान, हे कृषक तुम हो महान! बहाते पसीना दिन-रात हो, तुम हमारा अभिमान हो…
श्रम की अद्भुत मिसाल किसान - कविता - अर्चना कोहली
श्रम की अद्भुत मिसाल किसान कहलाते हैं, निर्धन-धनी सभी की क्षुधा शांत करते है। जी-तोड़ मेहनत कर ख़ुशहाली धरा पर लाते, फिर भी अधिकतर ही अ…
मेरा किसान - कविता - डॉ. कमलेंद्र कुमार श्रीवास्तव
श्रम बिंदु बहता जाए, काम वह तो करता जाए। सर्दी, गर्मी या हो बरसात, मेहनत करता है दिन-रात। खेतों में वह अन्न उगाता, अन्न तभी हमें मिल प…
अन्नदाता की भूख - कविता - फरहाना सय्यद
तेरा ग़ुरूर कृषक को मजबूर पुकारे, पर उस पुकार को साँसें सदा नकारे। उसके सपनों में तेरा लक्ष्य निहारे, तेरे मंसूबों में अटकी हलधर की साँ…
उम्मीद की उपज - कविता - गोलेन्द्र पटेल
उठो वत्स! भोर से ही ज़िंदगी का बोझ ढोना किसान होने की पहली शर्त है। धान उगा प्राण उगा मुस्कान उगी पहचान उगी और उग रही उम्मीद की किरण सु…