संदेश
मैं पीले साँप की जात में शामिल हो गया हूँ - कविता - सुरेन्द्र जिन्सी
रात को सोया तो लगा जैसे बिस्तर कोई पुराना जंगल हो उसमें रेंगते हैं मेरे अपने पाप, मेरे ही पसीने से नम हुई घास, और एक पीला साँप — ठीक म…
पेड़ की महानता - कविता - राजेश राजभर
पेड़ किसी का मित्र नहीं होता परंतु "मित्र" पेड़ जैसा नहीं होता! मित्रता की मिठास– पेड़ अन्तिम साँस तक देता है, एक पेड़ ही त…
मौन में प्रेम की वाणी हो तुम - कविता - चक्रवर्ती आयुष श्रीवास्तव
जब नयन मौन होकर पुकारें तुम्हें, उन दृगों की कहानी हो तुम। छाँव बनकर मेरे पथ में चलो, इस धरा की रवानी हो तुम। शब्द बिन भी समझ लो हृदय …
शून्यगामी - कविता - रविना बर्त्वाल
हर कोई अपने विकल्पों का निर्धारण करता है कल्प अकल्प के मध्य विकल्प चुन ना मेरे मन को राज़ी नहीं। मैं स्वयं बुन ना चाहती हूँ राह अपनी प…
योद्धा - कविता - निखिल पाण्डेय श्रावण्य
दृग् ग़िलाफ़ करो तुम ग़ौर से देखो हैं कितने युद्ध लड़े हुए। मृत्यु हैं कितनी बार डराई फिर भी डटकर खड़े हुए॥ डर भी भयभीत है हमसे ज़रा निकट …
पेड़ के साथ चली गई आत्मा - कविता - प्रतीक झा 'ओप्पी'
गर्मी का दिन था एक बूढ़ा आदमी झोपड़ी में अकेला रहता था रोज़ दिनभर की मेहनत के बाद वह घर के सामने वाले पेड़ के नीचे थोड़ी देर आराम करता…
संघर्ष - कविता - मदन लाल राज
जीवन बहुत कठिन है, हम जवान बच्चों को अब बुढ़ापे में समझाते हैं। पर क्या फ़ायदा! बचपन में हम ही उन्हें आत्मनिर्भर होने से बचाते हैं। अण्…
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