संदेश
भूलना - कविता - संजय राजभर 'समित'
उम्र के हिसाब से आदमी भूलने लगता है ज़रूरी भी है यह एक दवा है जीवन के अंतिम पड़ाव पर कुछ सुकून मिले क्योंकि इंसान फिर न लौट आने के पथ प…
वो अपने जो भेदी बन लंका ढहाते हैं - कविता - सीमा शर्मा 'तमन्ना'
अपने ही घर के भेदी अक्सर वो जो बन जाते हैं, वही अन्ततः उस सोने की लंका को एक दिन ढहाते हैं। भूल जाते बातों को जिनका फ़ायदा दूसरे उठाते …
वासंती उल्लास - कविता - मयंक द्विवेदी
बीत गए दिन पतझड के कलियों तुम शृंगार करो मधुर मधु-सरिता छलका मधुकर पर उपकार करो नील गगन के नील नयन से शबनम की बौछार करो हरित कनक की लड…
शांत नदी - कविता - निवेदिता
एक अध्याय का प्रारम्भ, और धारा फूट जाती है, कई ढलानों को पार कर, टकराती-चोट खाती, लड़खड़ाती संभलती टूटती बिखरती, फिर एक होती जाती है। …
या जाने दें - कविता - राजेश 'राज'
सवाल तुम्हारे सुनें या अनसुने ही जाने दें सवालों में ही घुले जवाब ढूँढे़ या अनुत्तरित जाने दें मैं एक कशमकश में हूँ कि सवालों और जवाबो…
आ गया वसन्त है - कविता - देवेश द्विवेदी 'देवेश'
नव कोपले हैं खिल उठी, कोयल ने छेड़ा राग है। नव कान्ति से शोभित हुआ, हर खेत और हर बाग़ है। अलसी के नीले फूलों से, सज गई हैं धरती माँ। सर…
सुन्दर बसन्त - कविता - निर्मल कुमार गुप्ता
सुन्दर बसन्त, मनभावन है, सुन्दर किसलय और पावन है। हर तरफ लरजती छटा निराली, हर मन मन्दिर में, छाई ख़ुशहाली। आज धरा का, नव शृंगार हुआ है,…
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