रूशदा नाज़ - वाराणसी (उत्तर प्रदेश)
जगमगाते दीप - कविता - रूशदा नाज़
गुरुवार, अक्टूबर 31, 2024
थके हुए मन से क्यूँ जीते है?
उदास चेहरे पर मुस्कान लाते है
आइए उमंगो में जीते है
जगमगाते जग में स्नेह का दीपक जलाते है
आइए मिलकर दिवाली मनाते है
ख़ुशियों की तलाश क्यूँ करते हो?
मिलती है ख़ुशियाँ अपनों के दरमियान
हँसते खेलते परिवारों में
बच्चों की किलकारियों में,
फूलझड़ी की चकाचौंध में,
जगमगाते जग में स्नेह का दीपक जलाते है
आइए मिलकर दिवाली मनाते है
मिठाइयों के दुकान में लम्बी कतार,
दीपक खरीदते लोगो में ख़ुशियों की बौछार
रंग-बिरंगी रंगोलियों में अपनो का प्यार
जगमगाते जग में स्नेह का का दीपक जलाते है
आइए मिलकर दिवाली मनाते है
हम सब दीप है,
जलेगें पूरा समाज होगा रोशन
हमसब मिलकर ख़ुशियाँ मनाएँ
मेरी अल्लाह से ढेरों दुआएँ
माँ लक्ष्मी का आशीर्वाद सदैव बना रहें
जगमगाते जग में स्नेह का दीपक जलाते है
आइए मिलकर दिवाली मनाते है।
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