नई किरणों के विरुद्ध - कविता - सुरेन्द्र प्रजापति

नई किरणों के विरुद्ध - कविता - सुरेन्द्र प्रजापति | Hindi Kavita - Naee Kiranon Ke Viruddh - Surendra Prajapati. प्रकाश पर हिंदी कविता
प्रकाश की रजत उज्ज्वला का दीप्त आवरण
तुम्हारे विश्वास को थपकी दे रहा है
मन की तरंग के आनंद खड़े हैं परिचित मार्ग
प्रातः कोमलता की नई किरणों के विरुद्ध
अचानक ये पहरा क्यों चारों ओर

आश्चर्य है कि मैं स्वरविहीन मौन
इस पैचाशिक समय के घनघोर में
कातर भीरुता के निविड़ शोर में

कुछ फीके उत्साह से भरा हूँ
विपुलता के उन्माद से डरा हूँ
विश्वास की उम्रों में
इस डरावने दिन का वारिस
अंतरिक्ष से गिरता है एक सजीव शब्द उम्मीद से भरी
तुम्हारे गहरे अँधेरे में
रात्रि का साँय-साँय करता प्रहर
अचानक से विद्रोह करता है


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