गदेहड़ी
वह है
प्रतीक गाली का
प्रतीक अनपढ़ का
प्रतीक ग़रीबी का
पिछड़ों से भी पिछड़ा
ग़रीबों से भी ग़रीब, दरिद्र
पर है वह भी इंसान ही
और उससे भेद करने वाला भी इंसान
जब दुनिया नींद की आग़ोश में हो
तब ये प्रकृति के नियमों का पालन करते हुए
उठ जाता है अपनी रोज़ी-रोटी के लिए
ऐसा लगता है अब भगवान भी भेद कर रहा है
बरकत और ना बरकत में
अब बदलना होगा इस भजन को
और कहना होगा
जो सोवत है वो पावत है
जो जागत है वो खोवत है।
डॉ॰ अबू होरैरा - हैदराबाद (तेलंगाना)