गदेहड़ी - कविता - डॉ॰ अबू होरैरा

गदेहड़ी - कविता - डॉ॰ अबू होरैरा | Hindi Kavita - Gadehadee - Dr Abu Horaira
गदेहड़ी
वह है
प्रतीक गाली का
प्रतीक अनपढ़ का
प्रतीक ग़रीबी का
पिछड़ों से भी पिछड़ा
ग़रीबों से भी ग़रीब, दरिद्र
पर है वह भी इंसान ही
और उससे भेद करने वाला भी इंसान
जब दुनिया नींद की आग़ोश में हो
तब ये प्रकृति के नियमों का पालन करते हुए
उठ जाता है अपनी रोज़ी-रोटी के लिए
ऐसा लगता है अब भगवान भी भेद कर रहा है
बरकत और ना बरकत में
अब बदलना होगा इस भजन को
और कहना होगा
जो सोवत है वो पावत है
जो जागत है वो खोवत है।

डॉ॰ अबू होरैरा - हैदराबाद (तेलंगाना)

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