सोमवार को भोर हुआ,
स्कूल जाने बड़ शोर हुआ।
मंगलवार दिन बड़ा सुहाया,
दोस्तो का हैं साथ दिलाया।
बुधवार को सब मस्ती करते,
टीचर पढ़ाती हँसते-हँसते।
गुरुवार जी सब लाते ख़्याल,
होमवर्क देख हाल बेहाल।
शुक्रवार को गए मैदान,
गिरे, लगे, खेलें सीना तान।
शनिवार थकान सी होती,
नींद के मारे आँख न खुलती।
रविवार सबका, दिन है महान,
स्कूल से हो जाऊँ अनजान।
मात पिता भी कुछ न कहते,
खेले मस्ती सैर है करते।
शाम जो आए घोर अँधेरा,
फ़िर से स्कूल का, शोर है पुरा।
रविन्द्र दुबे 'बाबु' - कोरबा (छत्तीसगढ़)