नदी और बाढ़ - कविता - डॉ॰ प्रियंका सोनकर

नदी और बाढ़ - कविता - डॉ॰ प्रियंका सोनकर | Hindi Kavita - Nadi Aur Baadh - Dr Priyanka Sonkar. Hindi Poem On River And Flood. नदी और बाढ़ पर कविता
नदी में बाढ़ का आना
उसकी आँखों में चमक आना था
इस बार बूढी दादी को
छोटी-छोटी 
मछलियाँ याद आई
साथ याद आया 
उसे अपना बचपन
गवना से पहले
जब एक बार उसके गाँव में बाढ़ आईं थीं
सखी सहेली मिलकर,
दुपट्टा हाथ में लिए
दौड़ लगाई थी सबने एक साथ
एक-एक बित्ते के हाथों ने, पकड़ा दुपट्टे के चारों कोनों को,
पानी में डुबोया,
और मछलियों के जाल में फँस जाने को उत्साहित ही थीं
ये मछलियाँ मछलियाँ नहीं थीं
साथ थीं, उमंग थीं, याराना थीं
अल्हड़ पन की।
अब न नदी है 
न बाढ़ है
उसके गाँव में; 
नदियों का सूखना
दादी की आँखों की चमक का विलुप्त हो जाना था
जैसे नदियाँ धीरे-धीरे विलुप्ति के मुहाने पर खड़ी रो रही हैं।

डॉ॰ प्रियंका सोनकर - वाराणसी (उत्तर प्रदेश)

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