डॉ॰ प्रियंका सोनकर - वाराणसी (उत्तर प्रदेश)
प्रेम पर पहरा - कविता - डॉ॰ प्रियंका सोनकर
गुरुवार, सितंबर 21, 2023
प्रेम पर हज़ार पहरे होने के बाद भी
उसने चुना प्रेमी होना
पता था उसे जाति के बाहर शादी करने पर
सज़ा क्या होगी उसकी
देखा था उसने
कई पीढ़ियों तक
कितनी ही ऐसी घटनाएँ
जहाँ
परम्पराओं की नोक पर
गाड़ दी गई थी उसकी बुआ की लाश
और जला दिए गए थे उसके अरमानों को भी
भरी पंचायत में गाँव वालों ने
सुनाया जब फ़ैसला
कि घोर पाप किया है इसने
प्रेम करके,
जबकि ये वो लोग थे
जो पूजते थे राधा और कृष्ण को रोज़
कुछ को संगीत में लीन हो जाते भी देखा
प्रेम से भरे गीतों पर
बार-बार मुग्ध हो जाया करते थे हरदम,
ये वो लोग थे
जिनकी मूँछे ऊँची थी पहाड़ों से भी
ख़बर तो थी सभ्यता के अंत होने की
लेकिन इनकी मूँछ के पीछे की शान का अंत
ख़बर नहीं बने किसी अख़बारों के कभी
वहाँ के बच्चे-बच्चे और महिलाएँ भी न जान पाए थे
कि इस सभ्यता का अंत कब होगा।
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