शब्दनाद - कविता - सुशील शर्मा

शब्दनाद - कविता - सुशील शर्मा | Hindi Kavita - Shabdnaad - Sushil Sharma. शब्द नाद पर कविता
करो कितना ही उपहास मेरा,
नहीं तोड़ूँगा अपना मौन। 
न अपनी संवेदनाओं को करूँगा विस्मृत,
न ही अनुवादों में जीकर, 
मूल को भूलूँगा। 
मैं रचता रहूँगा समाज की 
सृजनात्मकता को।

व्यंग के हथौड़े से ठोक कर 
उकेरूँगा स्वयं सिद्धा मूर्ती। 
यथार्थ सम्प्रेषण के रंगों से उसे 
सजाऊँगा नख शिख तक। 

मैं किसान सा उत्पादक नहीं 
न ही मेरी रचनाएँ कोई फ़सल हैं 
जो, मंडी में जाकर बिकेंगी। 
मेरी रचनाएँ मानव स्वाधीनता 
और सृजनात्मकता 
की वह वैशिट्य निष्पत्ति हैं,
जो ऐतिहासिक कालक्रम 
की माला में आज के युग को, 
संदर्भित कर अक्षुण्य शोभित होंगी। 

मेरे मौन छंद थिरकेंगे 
महाकाल की महासमाधि में। 
मेरी कविता का अविच्छिन्न प्रवाह,
कालक्रम के यज्ञ में बनेगा 
विरासत की समिधा। 
शब्दों के हविष्य समयाग्नि में 
करेंगे देवों को तृप्त। 

मेरे भावों का कृत संकल्प 
प्रकृति, ईश्वर और मनुज के 
अद्वैतपन का कालनुभव होगा। 
मेरा कवि 'शिवेतरक्षतये' दृष्टि में 
अंतर्निहित करुणा लिए, 
कल्प के आरंभ से कल्पांत तक 
रचता रहेगा शब्दनाद।

सुशील शर्मा - नरसिंहपुर (मध्य प्रदेश)

Instagram पर जुड़ें



साहित्य रचना को YouTube पर Subscribe करें।
देखिए साहित्य से जुड़ी Videos