उम्मीद की टहनी - कविता - सुरेन्द्र प्रजापति

उम्मीद की टहनी - कविता - सुरेन्द्र प्रजापति | Hindi Kavita - Ummeed Ki Tahani - Surendra Prajapati. उम्मीद पर हिंदी कविता
धीरे-धीरे हम बढ़ रहे हैं गंतव्य की ओर
लेकिन आशा के विपरीत हमारी उपस्थिति को
अनदेखा कर दिया जा रहा है

स्वयं को नकारा जाना, 
जीवन से भटक जाना है
फिर हम जाकर भी कहाँ जा रहे हैं?
समंदर में भी बूँद कहाँ पा रहे हैं?
उर्वर पर रेगिस्तान फैल रहा है

सीने पर एक सुरज उग आया है
सुबक रही है व्यथा की दारुण दशा
चन्द्रमा से उतरकर अँधेरे में टहल रही है
उम्मीद की टहनियाँ
हो रहा है वेदना का विस्तार 
अभिलाषा तार-तार

विचार पर पहरा है
अभिव्यक्ति छुट रहा है 
पकड़ से धीरे-धीरे
बहुत धीरे-धीरे सारे तर्क
स्वर्ग को लूट रहा है।


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