दिनकर-स्मृति - दोहा छंद - डॉ॰ राम कुमार झा 'निकुंज' | राष्ट्रकवि रामधारी सिंह 'दिनकर' पर दोहे

दिनकर-स्मृति - दोहा छंद - डॉ॰ राम कुमार झा 'निकुंज' | राष्ट्रकवि रामधारी सिंह 'दिनकर' पर दोहे Ramadhari Singh Dinkar Dohe - Dinkar Smriti
सिंहनाद भारत विजय, दिनकर सम आलोक। 
रग-रग धारी-शौर्य बल, राम नाम हर शोक॥ 

अलख जगाता क्रान्ति का, रश्मिरथी निर्बाध। 
अमर प्रेम पुरु उर्वशी, शत्रुंजय सब साध॥ 

कवि नेता जेता महत, सारस्वत शृंगार। 
भारत का इतिहास रच, अध्यायी यश चार॥ 

आंजनेय सम भक्त वह, राष्ट्र प्रेम सम राम। 
अर्पण तन मन सम लखन, दिनकर कुल सुखधाम॥ 

क्षमाशील त्यागी गुणी, कर्मपथी बिन स्वार्थ। 
दुर्जय जीता राष्ट्रकवि, ब्रह्मशिरा शब्दार्थ॥ 

पीठाधीश्वर ज्ञान का, अकादमी साहित्य। 
अलंकरण सब थे वृथा, मान दान औचित्य॥ 

धन्य धरा माँ भारती, मृत्तिका पुण्य बिहार। 
भाषा हिन्दी पावना, कवि दिनकर उपहार॥ 

भारत माँ जयकार से, गूँजा हिन्दुस्तान। 
दिनकर कविता कामिनी, खिली कीर्ति चहुँ मान॥ 

धन्य हुई भारत धरा, धन्य हिन्द औचित्य। 
हिन्दी भाषा धन्य है, पा दिनकर साहित्य॥ 

कवि निकुंज शत शत नमन, कवि दिनकर सम्मान। 
वरदपुत्र माँ शारदे, राष्ट्र अमर वरदान॥ 


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