भैय्या बॉर्डर पे शहीद हुए, कैसे राखी भिजवाऊँ मैं,
रोली चावल से कैसे अब उनको तिलक लगाऊँ मैं।
वो रक्षा करते सरहद की, सब त्यौहार सूने से जाते है,
होली के रंग फीके से, दिवाली में दीप नहीं जल पाते है।
वादा किया था आने का, इस बार भी वो आ न सके,
फ़र्ज़ के रास्ते बड़े कठिन, रिश्तों की भेंट चढ़ा न सके।
अबकी आऊँगा राखी पे, मेरी बहना मेरा ये वादा है,
तेरी प्यारी सूरत देखने को मेरा व्याकुल मन ज़्यादा है।
बाबू जी के लिए छड़ी, और माँ का चश्मा भी लाना है,
आवेदन मैंने लगा दिया, मुझे अबकी राखी पे जाना है।
तुझ पर भैय्या है नाज़ मुझे, तूने अपना फ़र्ज़ निभाया है,
मेरी राखी की लाज रखी तुमने, दुश्मन को मार भगाया है।
देखो आज भैय्या मेरा, कांधों पे चढ़ के आया है,
तिरंगा उसके तन पर सोभित, नैनो ने अश्क बहाया है।
आज राखी बाँध दूँ तुझको वीर, फिर से हाथ मिले न मिले,
आ चूम लूँ तेरे माथे को, फिर तेरा साथ मिले न मिले।
एक वचन चाहिए तुमसे भैय्या, हर जन्म में तुमसा वीर मिले,
मेरी राखी सदा तेरे हाथ बंधे, ऐसे मुझको तक़दीर मिले।
अनूप अम्बर - फ़र्रूख़ाबाद (उत्तर प्रदेश)