राष्ट्र प्रेम - कविता - राजेश 'राज'

सब भारत माँ के सपूत हैं,
जाति धर्म में न बँट पाएँ।
भारत माता की जय बोलो
राष्ट्रधर्म हित सब जुट जाएँ।

अनेकता में भरके एकता,
जन जन गर्वित हों हर्षाएँ।
राष्ट्रप्रेम से गदगद होकर,
राष्ट्रध्वजा सब लहराएँ।

भाषा, बोली भिन्न-भिन्न हैं,
पहनावे अनेक मिल जाएँ।
रीति-रिवाज त्योहार अनेकों,
खानपान का लुत्फ़ उठाएँ।

शिष्टाचार भेंट अलग सब,
आचरणों पर बलि-बलि जाएँ।
जय हिन्द के नारे लगाकर,
देश प्रेम को हँसी-हँसी गाएँ।

गंगा यमुना का अविरल प्रवाह,
करता है धरती को सिंचित।
अरावली, सतपुड़ा, हिमाचल,
प्रहरी बनकर करते रक्षित।

आओ भैया आओ बहनों,
देश प्रेम के दीप जलाएँ।
ज्ञान विज्ञान का अर्जन कर,
विश्वगुरु हम इसे बनाएँ।

राजेश 'राज' - कन्नौज (उत्तर प्रदेश)

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