हो सफल सकल अभिलाष सफ़र - कविता - डॉ॰ राम कुमार झा 'निकुंज'

आग़ाज़ सुपथ संकल्प अटल, पुरुषार्थ सुगम बन जाता है। 
उल्लास नवल धीरज संयम, साफल्य मधुर मुस्काता है। 
अरुणाभ समुन्नत सोच शिखर, विश्वास ध्येय पथ जाता है। 
मिट सकल विपद बाधा दुर्गम, परहित कर्त्तव्य निभाता है। 
हो सफल सकल अभिलाष सफ़र, हमसफ़र कर्म मदमाता है। 
आनन्द स्वयं अनुभूति मधुर सम्बन्ध सृजन कर जाता है। 
भरता उमंग जीवन तरंग नवरंग हृदय छा जाता है। 
माधुर्य भाव अपनापन चहुँ, रिश्तों की डोर बढ़ाता है। 
जीवनार्थ समझ पुरुषार्थ सहज अवसाद शहद बन जाता है। 
करुणार्द्र सदय हो क्षमा हृदय भाग्योदय परहित गाता है। 
भगवान् साथ मुस्कान अधर नव प्रगति शिखर चढ़ जाता है। 
संस्कार चरित गुलज़ार यतन शान्ति प्रेम वतन मुस्काता है। 


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