पाकिस्तानी क़व्वाल और गीतकार फैज़ अली फैज़ साहब के गीत "दिल-ए-उम्मीद तोड़ा है किसी ने" पर आधारित।
अरकान : मुफ़ाईलुन मुफ़ाईलुन फ़ऊलुन
तक़ती : 1222 1222 122
मंज़िल हमारी कैसे मिलेगी
मंज़िल हमारी कैसे मिलेगी
सफ़ीने पर बिठाया है उसी ने
सफ़ीने पर बिठाया है उसी ने
सफ़ीना भी बनाया है उसी ने
सफ़ीने पर बिठाया है उसी ने
सफ़ीने पर बिठाया है उसी ने
मंज़िल हमारी कैसे मिलेगी
मंज़िल हमारी कैसे मिलेगी
लोग कुछ भी कहें चलते रहेंगे
लोग कुछ भी कहें चलते रहेंगे
लोग कुछ भी कहें चलते रहेंगे
सफ़ीने पर बिठाया है उसी ने
सफ़ीने पर बिठाया है उसी ने
मंज़िल हमारी कैसे मिलेगी
मंज़िल हमारी कैसे मिलेगी
मंज़िल हमारी कैसे मिलेगी
मंज़िल हमारी कैसे मिलेगी
मेरी उम्मीद थी सागर से मिलना
मेरी उम्मीद थी सागर से मिलना
मेरी उम्मीद थी सागर से मिलना
सफ़ीने पर बिठाया था उसी ने
सफ़ीने पर बिठाया था उसी ने
सफ़ीना भी बनाया है उसी ने
सफ़ीना भी बनाया है उसी ने
मंज़िल हमारी कैसे मिलेगी
मंज़िल हमारी कैसे मिलेगी
मंज़िल हमारी कैसे मिलेगी
न साहिल है न है कोई किनारा
न साहिल है न है कोई किनारा
न साहिल है न है कोई किनारा
न रहबर है न है कोई सहारा
न रहबर है न है कोई सहारा
सफ़ीना वो बनाया था उसी ने
सफ़ीने पर बिठाया है उसी ने
सफ़ीने पर बिठाया है उसी ने
सफ़ीना भी बनाया है उसी ने
मंज़िल हमारी कैसे मिलेगी
मंज़िल हमारी कैसे मिलेगी
मैं अपने ना-ख़ुदा से पूछता हूँ
मैं अपने ना-ख़ुदा से पूछता हूँ
मैं अपने ना-ख़ुदा से पूछता हूँ
कभी मंज़िल पे लाया है किसी को
कभी मंज़िल पे लाया है किसी को
कभी मंज़िल पे लाया है किसी को
सफ़ीने पर बिठाया है उसी ने
सफ़ीने पर बिठाया है उसी ने
मंज़िल हमारी कैसे मिलेगी
मंज़िल हमारी कैसे मिलेगी
मंज़िल हमारी कैसे मिलेगी
लोग कुछ भी कहें चलते रहेंगे
लोग कुछ भी कहें चलते रहेंगे
कहाँ बहकर के आया है सफ़ीना
कहाँ बहकर के आया है सफ़ीना
कहाँ बहकर के आया है सफ़ीना
है चारों ओर ये छाया अँधेरा
है चारों ओर ये छाया अँधेरा
है चारों ओर ये छाया अँधेरा
सफ़र में रात अब होने लगी है
सफ़र में रात अब होने लगी है
सफ़र में रात अब होने लगी है
मंज़िल हमारी कैसे मिलेगी
मंज़िल हमारी कैसे मिलेगी
मंज़िल हमारी कैसे मिलेगी
नदी सागर से आकर मिल रही है
नदी सागर से आकर मिल रही है
नदी सागर से आकर मिल रही है
मुझे मंज़िल हमारी मिल गई है
मुझे मंज़िल हमारी मिल गई है
मुझे मंज़िल हमारी मिल गई है
ये पन्ने डायरी के नम बहुत हैं
ये पन्ने डायरी के नम बहुत हैं
ये पन्ने डायरी के नम बहुत हैं
कहानी आँसुओं से ही लिखी क्या
कहानी आँसुओं से ही लिखी क्या
प्रशान्त 'अरहत' - शाहाबाद, हरदोई (उत्तर प्रदेश)