मुसलसल हम अगर मिलते रहेंगे - ग़ज़ल - प्रशान्त 'अरहत'

अरकान: मफ़ाईलुन मफ़ाईलुन फ़ऊलुन
तक़ती: 1222  1222  122

मुसलसल हम अगर मिलते रहेंगे,
पुराने ज़ख्म सब सिलते रहेंगे।

इजाज़त तुम अगर दे दो मुझे तो,
तुम्हें हम ख़्वाब में मिलते रहेंगे।

अगर सपना हक़ीक़त हो गया तो,
क्षितिज तक साथ हम चलते रहेंगे।

बहुत सुंदर बहुत कोमल तुम्हारे,
लब-ओ-रुख़सार ये खिलते रहेंगे।

अजब सी हम पहेली हो गए क्या,
हमेशा हर जगह टलते रहेंगे?

मिले हैं जिस तरह से आज हम-तुम,
हमेशा इस तरह मिलते रहेंगे?


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