सवाल फिर वही था, पर मैं जवाब नया बताता हूँ l
कौन हूँ, मैं क्या करता हूँ, कविता के ज़रिए सुनाता हूँ॥
सुन्दर सी इक बगिया है और मैं हूँ उसका बाग़बान।
जहाँ नन्हे पौधे फल-फूलकर बनते इक दिन वृक्ष महान॥
मेरा काम है इन नन्हे परिंदों के परों में जान भरना।
ताकि वो सीख पाएँ अपने हौसलों की उड़ान भरना॥
इनके सपनों की ज़मीं को मंज़िल के आसमाँ से जोड़ता हूँ।
सुनहरे कल के सृजन हेतु मैं अपना पुरुषार्थ निचोड़ता हूँ॥
इन कच्चे घड़ों को अपने ज्ञान-तप से पकाता हूँ।
इसलिए शिल्पी शिल्पकार जैसे नामों से पुकारा जाता हूँ॥
क़लम, किताब, चॉक और बालक, इन्हीं से मेरी पहचान है।
अध्यापन है मेरा पेशा और मुझे इस पर अभिमान है॥
तराश कर हुनर इनके, मैं इन्हे क़ाबिल बनाता हूँ।
मैं एक शिक्षक हूँ जनाब और बच्चों को पढ़ाता हूँ॥
ज्ञान और विवेक से मैं इनके भविष्य गढ़ता हूँ।
अपने उत्तम अध्यापन हेतु स्वयं घंटों तक पढ़ता हूँ॥
प्रलय और सृजन का बीज मेरी गोद में पलता है।
मैं विशिष्ट कृति हूँ विधाता की, मेरे पीछे ज़माना चलता है॥
जो बीच राह मैं भटक गए मैं उन्हें राह दिखलाता हूँ।
मैं शिक्षक, गुरु, मैं मार्गदर्शक, मैं ही राष्ट्रनिर्माता हूँ॥
ये महज़ पेशा नहीं, सेवा है, जिसको हमने अपनाया है।
बड़ी ख़ुशी से इस ज़िम्मेदारी को हमने गले लगाया है॥
आओ मिल संकल्प करें कि हम अपना फ़र्ज़ निभाएँगे।
अपने प्यारे भारतवर्ष को फिर विश्वगुरु बनाएँगे॥
रामानंद पारीक - चुरू (राजस्थान)