मैं जल हूँ - कविता - जितेन्द्र शर्मा

मैं जल हूँ!
मैं श्वेत धवल हूँ शीतल हूँ।
मैं जल हूँ! मैं जल हूँ।

नभ से झर कर इस तप्त धरा पर, स्वयं को खोकर सुख पाता हूँ।
मैं अजर अमर मैं जीवन हूँ, जन जन की प्यास बुझाता हूँ॥
मैं दोष रहित हूँ, निर्मल हूँ।
मैं श्वेत धवल हूँ, शीतल हूँ॥
मैं जल हूँ! मैं जल हूँ!

कल-कल छल-छल नदियाँ बनकर,
सुख पाता हूँ बहने में।
हिम खण्ड रहुँ या वाष्प बनु, निर्लेप हूँ सबकुछ सहने में॥
आनन्दित मैं हर इक पल हूँ।
मैं श्वेत धवल हूँ, शीतल हूँ॥
मैं जल हूँ! मैं जल हूँ!

लालायित हूँ गतिमान हूँ मैं, जलधाम में जाने को।
अनन्त सागर में मिलकर, ख़ुद अनन्त हो जाने को॥
मैं लहरों का संबल हूँ।
मैं श्वेत धवल हूँ, शीतल हूँ॥
मैं जल हूँ! मैं जल हूँ!

जितेंद्र शर्मा - मेरठ (उत्तर प्रदेश)

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